Sunday, November 4, 2012

वो रुला कर हँस न पाया देर तक
 जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक

भूलना चाहा कभी उसको अगर
और भी वो याद आया देर तक

ख़ुद ब ख़ुद बे-साख्ता मैं हंस पड़ा
उसने इस दर्जा रुलाया देर तक

भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक

गुनगुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रहती है न छाया देर तक

कल अन्धेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनू जगमगाया देर तक

-नवाज़ देवबंदी

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